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तुलादान

प्राचीन काल से तुला दान का इंसान के जीवन में बहुत ही महत्व रहा है। दान का शाब्दिक अर्थ है – 'देने की क्रिया'। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है। और आज के दौर में सबसे ज्यादा बुरी हालत में गौ माता ही है इसलिए तुला पर अपने वजन का अनाज और गौखाद्य पदार्थ गौ के लिए दान देने से गौसेवा के साथ आप स्वयं भी अपने भाग्य को तराश लेते है
पौराणिक आख्यान के अनुसान प्रयाग की पवित्र धरती पर प्रजापति ब्रह्मा ने सभी तीर्थों को तौला था। शेष भगवान के कहने से तीर्थों को तौलने का इन्तजाम किया गया था, इसका उद्देश्य तीर्थों और तीर्थ से भी अधिक बढकर के कौन सा पुन्य फल दायी है इस की पुण्य गरिमा का पता लगाना था। ब्रह्मा ने तराजू के एक पलड़े पर सभी तीर्थ, सातों सागर और सारी धरती रख दी। दूसरे पलड़े पर उन्होंने गौ माता को रख दिया। अन्य तीर्थों का पलड़ा हल्का होकर आकाश में ध्रुव मण्डल को छूने लगा, लेकिन गौ माता का पलड़ा धरती को छूता रहा।

ब्रह्मा की इस परीक्षा से हमेशा के लिए तय हो गया कि गौ माता से बढ़कर कोई नहीं है. इस लिए गौ माता को तुलादान अत्यन्त फल दायी है, गौ शालाओं में किया गया दान करोडो वर्षो तक साथ रहता है!
तुलादान राशि 80-100 कि.ग्रा. - 2100