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पंचगव्य

गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है।
पंचगव्य के घटक
पंचगव्य का प्रत्येक घटक अपने में पूर्ण, महत्त्वपूर्ण गुणों से संपन्न और चमत्कारिक है।

गाय का दूध (गोदुग्ध)
इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।

गाय का दही (गोदधि)
गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो भूख को बढ़ाने में सहायता करते हैं। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है।

गाय का घी (गोघृत)
गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी है। घी का प्रयोग शरीर की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए किया जाता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।

गाय का मूत्र (गोमूत्र)
महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता, राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, क्लोराइड, नमक,विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल, क्रियेटिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं। गोमूत्र में प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है। चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है। यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।


गाय का गोबर (गोमय)
गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है। यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जोगाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।