गौमहिमा
ऋग्वेद में गाय को 'मा गामनागामदितिं वधिष्ट' कहा गया है। इसका अभिप्राय है कि गाय अदिति अर्थात अविनाशी अमृतत्व का अंश है। मनुष्य को स्वस्थ, हृष्ट पुष्ट और नीरोग रखना, ईश्वरीय प्रेरणा का कार्य है। जिसके लिए ईश्वर ने अनेकों वनस्पतियों व औषधियों की रचना की है, परंतु यदि कोई व्यक्ति अज्ञान से, आलस्य या प्रमाद से उन वनस्पतियों को या औषधियों को अपने प्रयोग में ना ला सके, तो वह गौमाता का पालन-पोषण कर उसके पंचगव्य से भी अपना काम चला सकता है। जिससे वह निरोग रहेगा। ईश्वर का यह अमृतमयी स्वरूप या तो वनस्पतियों या औषधियों में समाया है या फिर गाय माता में समाया है। इसलिए वह ईश्वर के अमृतत्व का प्रतीक होने से अवध्या है, अदिति है। अमृतत्व स्वयं अमृत होकर औरों को भी अमृत होने का मार्ग दिखाता है। इसकी रक्षा से मनुष्य ही नही सभी प्राणियों की रक्षा की जानी संभव है।